कर्ज गौरी मेरी मुहब्बत का चुकाया नहीं,
तेरे खाते में मगर कोई बकाया भी नही ।।
यू सितम मुझ पे किसी और ने ढाया भी नहीं,
कोई तेरे सिवा दिल मे समाया भी नहीं ।।
हमने कोई राज मुहब्बत का छुपाया भी नहीं,
घाव सीने का जमाने को दिखाया भी नहीं ।।
कह के भी कुछ न गयी; लौट के आयी भी नहीं,
मेने पूछा भी नहीं; तुने बताया भी नहीं ।।
तेरे खाते में मगर कोई बकाया भी नही ।।
यू सितम मुझ पे किसी और ने ढाया भी नहीं,
कोई तेरे सिवा दिल मे समाया भी नहीं ।।
हमने कोई राज मुहब्बत का छुपाया भी नहीं,
घाव सीने का जमाने को दिखाया भी नहीं ।।
कह के भी कुछ न गयी; लौट के आयी भी नहीं,
मेने पूछा भी नहीं; तुने बताया भी नहीं ।।
यार रूठा हुआ ; सौ बार मनाया होगा,
जौ मुकद्दर कभी रूठा तो मनाया भी नहीं ।।
फिर भी उम्मीद ए वादा रखते है हम हांलाकि,
आज तक वादा कोई उसने निभाया भी नहीं ।।
राही ए इश्क है ; तपता हुआ सहरा उलफत,
दूर तक जिसमे कोई ; पेड़ का साया भी नही ।।
खुद को खो देने से मंजिल का पता मिलता है,
जिसने खोया नहीं उसने पाया भी नहीं ।।
याद से क्यो न रहे दूर खुशी जब उसने,
हंसते सीने से कभी लगाया भी नहीं ।।
By GHANSHYAM BHARTI
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