Tuesday, January 3, 2017

बाबुल की गलियाँ कविता

14/12/2016

देखी है यहां  मैने कलियों  की चहचहाहट,
देखी है यहां  मैने कलियों  की खटपटाहट ।

कितनी  नादान  होती है यहां  उनकी  जिंदगी,
शायद    यहीं  शान  होती  है  उनकी  जिंदगी ।

यहां  उनको  ना  कुछ  चिंता  होती  है,
यहां  उनको  ना  कुछ  डर     होता  है ।

देखा है  मैंने  उनको  यहां  खिलके  मुस्काते,
ऑसुओ को देखा ना कभी उनके चेहरे पे आते।

बस यहीं  खुलकर जीते  देखा  है  मैंने  उनको,
फिर कहां ये पल  मिलते  देखा है  मैंने  उनको।

बाबुल  की  गलियों  वाले  दिन  कितने  सुनहरे  होते  है,
याद आते है जीवन में हमेशा वो पल जो चिनहरे  होते है ।

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Written at maharani college
By mad writer virendra bharti
Contact :- 8561887634

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