गांधी था या कबाड़ी (देवदूत ) था ,
सबसे बड़ा खिलाड़ी (यमदूत ) था ।
हिंसा का दुराचारी था,
अहिंसा का पुजारी था।
भ्रष्टाचार का विरोधी था,
न जाने कौनसी घड़ी में जन्मा था।
न जाने किस योग में पनपा था ।।
अत्याचार के खिलाफ था,
न जाने कैसे सोचता था वो।
कैसे सोचा उसने इतना अच्छा ।।
कहीं दिमाग से पैदल तो नहीं था वो।
कहीं दिमाग से लंगडी तो न खेली उसने।
कैसा खेल खेला उसने अंग्रेजो के संग ।
कर लिया झमेला उसने अंग्रेजो के संग।
कर लिया पंगा अंग्रेजो से। और छेड़ी जंग खिलाफ अंग्रेजों के ।
अंग्रेजों ने डाला उसे उठाकर ससुराल (कारागार ) में ।
वहां से होकर निकला वो निचंगा अपने दरबार में ।
बाहर आते ही उसने फिर कर लिया पंगा ।
नहीं था यह उसके लट्ठ का दंगा ।
सत्य का पुजारी था , असत्य का दुराचारी था ।
आचार उसका विचार करने योग्य था।
क्योंकि वह सदाचारी था।
खादी से रोका उसने देश की बर्बादी को।
खादी पहनना सिखाया देश की आबादी को।।
प्यार के दो बोलो से खिला दिया उसने सुखे दिलों की वादी को।
प्यार से कर दिया पैसे का बड़ा नुकसान ।
हराकर अंग्रेजों को चला गया श्मशान ।
छोटी सी सोटी हाथ में लिए वह बापू की मूरत थी अमिट।
जो लगा गई छाप स्याही बिना परमिट ।।
बदल सकते है उनके दर्शन से देश के हालात ।
बदल गया अंग्रेज़ तो क्यों नहीं बदलेगा भारत का बदमाश ।।
लेखक विरेन्द्र भारती
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