जिंदा कर तू अपने उस हुनर को ।
जो ले जाए तुझे शिखर को ।।
जिंदा कर तू अपने उस हुनर को ।
जो झुकने ना दे तेरे सिर को ।।
अरे मर्द है तो मर्द सी बात कर ।
यूँ प्यार व्यार के चक्कर में जिंदगी बर्बाद ना कर ।।
जिंदा कर तू अपने उस हुनर को ।
जो पहचान दिलाए तेरे सफर को ।।
जिंदा कर तू अपने उस हुनर को ।
जो संवारे तेरे व्यक्तित्व को ।।
अरे जिंदा है तो मुर्दो सी बात ना कर ।
दूसरों के लिए भी कुछ करामात कर ।।
जिंदा कर तू अपने उस हुनर को ।
जो बनाएं नव तेरे जीवन को ।।
जिंदा कर तू खुद को ।
जिंदा कर तू अपने हुनर को । जिंदा कर ।।
लेखक विरेन्द्र भारती
8561887634
No comments:
Post a Comment